बुधवार, 2 जुलाई 2008

कौन से जहाज़ की बात है सोच के बताओ......


धरती पर बाढ़ आयी हुई थी।मेरी जान मश्किल में थी।अब निकली कि तब निकली। मैं भाग कर जान बचाने की जुगत में था कि दुर समुद्र के किनारे एक जहाज खड़ा दिखाई दिया।उस जहाज पर चढ़ते हुए मैं सोच रहा था कि यह मुझे बचा लेगा।जबकि जहाज का कैप्टन लगातार चिल्ला रहा था कि इस पर मत चढ़ो।जहाज का शुरूआती सफर तो काफी मजेदार रहा लेकिन समय बीतने के साथ हालात के झटके लगने लगे।जहाज के कैप्टन ने जहाज की शर्तों की बताना शुरू कर दिया।कहाकि इस जहाज पर चढ़ने की शर्त है कि इससे बीच मजधार में उतरना पड़ता है,मंजिल तो मिलती है लेकिन डूबने से मुक्ति नहीं।यह जहाज बीच समुद्र में ही सबको उतार देता है।साथ ही कैप्टन यह विश्वास भी दिलाता रहा कि इसी डूबने उतराने के बीच तुम्हें अपनी जमीन खुद ही तलाशनी होगी।यही जमीन आपकी पूंजी होगी। अब तुम्हे तय करना होगा कि तुम कैसी जमीन चाहते हो।यह कोई शान्त समुद्र नहीं बल्कि यहां पर पहले से समुद्री धाराएं मौजूद हैं,सबकुछ अपने साथ बहा ले जाने के लिए।यहां शार्क जैसी मछलियां भी मौजूद हैं आपको निगल जाने के लिए।अब डूब भी है लेकिन न भागने की शर्त भी तो खुद की है। अब जमीन कितनी मजबूत और व्यापक बनेगी यह मेरे संघर्ष पर निर्भर करती है। यह जमीन कितनों को जगह दे पाएगा यह संघर्ष की शर्तों में से एक है। किसी मौजूद धारा में न बहने की कवायद भी करनी पड़ेगी। जमीन की सार्वभौमिकता का असर भी लाना होगा।

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