सोमवार, 30 जून 2008

आज सुबह कैसी गुजरी....

आज सुबह ही मेरे कुछ दोस्त कमरे पर आ गए। उनके आने पर चाय-विस्किट की व्यवस्था की गई। इसका उल्लेख इसलिए जरुरी समझा क्योंकि यह कभी-कभी हो पाता है। समय लगभग आठ बजे का था...इसी समय एफएम गोल्ड पर समाचार आने लगा।खबर थी कि बिहार में बाढ़ आने की सम्भावना बढ़ रही है। समाचार सुन कर मेरे पार्टनर और आई.आई.एम.सी. में सहपाठी रहे पीयूष तिवारी ने कहा कि अब नेताओं का हवाई सर्वेक्षण शुरू होगा।यह देखने के लिए कि कितने वोटर डूब गए हैं और कितने बचे रह गए हैं।डूबने वाले किस पार्टी के वोटर थे। अगर अपनी पार्टी के तो ज्यादा राहत सामग्री पहुंचानी पड़ेगी और अगर विरोधी गुट के तो केवल खानापूर्ति। दरअसल यह कोई कयास नहीं बल्कि अनुभव की गई सच्चाई थी। बिहार का बहुचर्चित बाढ़ घोटाला जिसमें कई अधिकारी सीधे तौर पर दोषी पाए गए थे,ऐसे ही प्रयासों का परिणाम है। संसदीय उत्तरदायित्व के तहत नौकरशाही को कार्यपालिका का औजार माना गया और नौकरशाही के सही या बुरे सभी कामों के लिए मंत्रिमण्डल को जिम्मेदार ठहराया गया है। इसलिए इस घोटाले को राजनेताओं का ही काला कारनामा मानना पड़ेगा। नेताओं के ऐसे ही कारनामों में गुड्डू पण्डित का गुनाह भी एक है। यह सभी बातें हमारे बीच तर्कों और कुतर्कों के साथ थोड़ी देर चली। इतने में एक साथी ने ऑफिस जाने की घोषणा कर दी जिससे हमारी महफिल समाप्त हो गई।

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